आओ खेले दंगा – दंगा
होने दो वोटर को नंगा
किस्तम ने मौहाल बिग़ाड़ा
लूटो वोटे , कर लो पंगा
मुद्दों को भटकाने आए
सत्ता पर्व मनाने आए
बेसरमी की रेस लगाओ
होके नबंर एक लफंगा
मरने दो भूख से जनता
जीत की खुशबू से हम चंगा
आओ खेले दंगा – दंगा
होने दो वोटर को नंगा
अफ़साने कुछ अनजाने, और गीत पुराने लाया हूँ.... आज तुम्हारी बातों से मैं लफ़्ज़ चुराने आया हूँ.
Monday, January 6, 2020
आओ खेले दंगा – दंगा
Monday, March 26, 2018
सवाल
सवाल
गुल्लक में ज़्यादा यादें हैं
या फिर डायरी में
है यादों के सिक्के?
कूलर से आती हवा में ज़्यादा सौंधापन है
या फिर चाय के कुल्हड़ में?
पेंसिल के छिलके ज़्यादा क़ीमती है
या फिर सूखे गुलाब से बना बुक मार्क?
सवाल अधूरे अच्छे है
या फिर ख़त्म हो जाना उनका जवाबों के साथ?
गुल्लक में ज़्यादा यादें हैं
या फिर डायरी में
है यादों के सिक्के?
Thursday, January 25, 2018
लफ्ज़
आओ कुछ लफ्ज़ बिखेरे.
ले ले जज़्बातों के फेरे..
सर्दी में खटिया पे सुखाए
या फिर आचल में काढ़े उकेरे ..
इन्हे कैनवास पे सजाए चितेरे
कुछ रेशमी , कुछ कपासी ,
कुछ तेरे कुछ मेरे ..
आओ कुछ लफ्ज़ बिखेरे.
ले ले जज़्बातों के फेरे..
Tuesday, November 1, 2016
देश यही है , यही है दुनिया
फ़ेसबुक पे करे लड़ाई
एक दूजे से भाई भाई
मजहब को भी यही बचाए
जान की बाज़ी यही लगाए
देश यही है , यही है दुनिया
बेचे बातें बन के बनिया
फ़ेसबुक पे करे लड़ाई
एक दूजे से भाई भाई
बात बात में गाली छाटें
और मिल के नफ़रत बाटें
लाइक करे है चौड़ी छाती
नीली टिक है ऊँची जाती
फेंक पत्थर कमेंट के मारो
मारो ताने जम के यारों
फ़ेसबुक पे करे लड़ाई
एक दूजे से भाई भाई
- आकाश पांडेय
Saturday, August 20, 2016
खेत क्या होता है ? , पूछेगे लोग
खेत क्या होता है ? , पूछेगे लोग
किसान तो एक सॉस का नाम है हम जानते है ।
मिल्क पैकेट से आता है , ये भी पता है
और गेहूँ ? बाली ?
बाली आइ नो ।। वो जो कान में पहनते है ।
खेत क्या होता है ? , पूछेगे आज़ाद लोग
- आकाश पांडेय , आज़ाद भारत , मुंबई २१ अगस्त , सन २०१६
Friday, August 19, 2016
सौधा सौधा सा था
बचपन में आँगन का अँधेरा भी
सौधा सौधा सा था ।
वो खुशनुमा सा था ,
उसमें थी , कहानियाँ ।
मिट्टी के तेल की कुप्पी से आती
लौ से निकला काजल ।
जुगनू , बारिश की आवाज़ ,
और सुबह के सूरज की उम्मीद ।
ये अँधेरा बड़ा अजनबी सा लगता है ,
बहुत रौशनी है इसमें ।
शायद मोतियाबिंद में माँ को
ऐसा ही लगता होगा ।
बचपन में आँगन का अँधेरा भी
सौधा सौधा सा था ।
- आकाश पांडेय , मुम्बई २० अगस्त , २०१६
Saturday, May 7, 2016
बोतलें
काट के जंगल बनाया है शहर हमने
अब बोतलों में यहाँ जंगल को तरसते हैं
सुखा के पानी हम बने आका से फिरते है
सब बोतलों में चुल्लू बना के डूबते है रोज़
- आकाश पाण्डेय
8 मई 2016
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